राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रायपुर ने मनाया विजयादशमी उत्सव
शस्त्रपूजन कर स्वयंसेवकों ने निकाला पथसंचलन
रायपुर – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रायपुर महानगर द्वारा आज प्रातः यहां नेताजी सुभाष स्टेडियम के प्रांगण में विजयादशमी उत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर शस्त्र पूजन किया गया तत्पश्चात् स्वयंसेवकों द्वारा पदसंचलन निकाला गया जो सुभाष स्टेडियम से प्रारम्भ होकर शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए वापस सुभाष स्टेडियम में समाप्त हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रांत प्रचारक श्री प्रेमशंकर जी सिदार थे जिनका उद्बोधन सार इस प्रकार है –
‘‘ आज विजयादशमी का पर्व है यह शस्त्रपूजन का पर्व है। आप सब जानते ही हैं कि विजयादशमी के दिन बुराई के प्रतीक रावण का दहन किया गया। इस दिन सदवृत्तियों का संरक्षण किया गया था, समाज को अभय दिया गया, संस्कारों को सुरक्षित किया गया और जिन बुरी शक्तियों ने समाज को दुखी कर अत्याचार किया था, उनका संहार किया गया था। ’’
‘‘आज हम सब विचार करेंगे यह विजय का पर्व है, परिमार्जन का पर्व है, सुधार का पर्व है। इस समय समाज में व्याप्त दुर्गुणों का निवारण होना चाहिये और सद्गुणों का संरक्षण किया जाना चाहिये। निरन्तर सद्गुणों का विकास करते हुए समाज में व्यक्ति का निर्माण होना चाहिये। हमें यह प्रयास करना चाहिये कि समाज के साथ-साथ व्यक्ति के मन में जो मलिनता होती है, वैसे दोष का शमन हो और निरन्तर सद्गुणों के लिए प्रयासरत् समाज निरन्तर आगे बढ़ता जाये।
‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना देश के इतिहास की प्रमुख घटना है। यह उस समय की बात है जब डाॅ हेगडेवार जी ने देखा कि उस समय देश में नैराश्य का वातावरण था, समाज आत्मग्लानि से भरा था जिसके कारण समाज में जड़ता आ गई थी और समाज चाहकर भी पराधीनता से मुक्त नहीं हो पा रहा था। स्वाधीनता की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी। आत्मविस्मृति की स्थिति थी। मेरा पुरूषार्थ क्या है यह समाज को ज्ञात नहीं था। तब उन्होंने समाज को जागृत करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था तुम कौन हो अपने आप को जानों । हमारे पूर्वज श्री रामचन्द्र जी ने मर्यादापुरूषोत्तम की तरह जीवन जीकर मर्यादा में रहते हुए एक आदर्श जीवन कैसे हो सकता है इसका उदाहरण प्रस्तुत किया। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ऐसा अमृतसंदेश दिया है कि जीवन में कैसी भी समस्या हो एक आदर्श जीवन कैसे जीया जाये। जीवन के अंदर सर्वहित समभाव बंधुत्व का भाव रहे और सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश देश के महापुरूषों ने दिया है।
एक व्यक्ति नहीं एक देश नहीं, एक जाति नहीं, अपितु सभी प्राणी सुखी हो। सभी प्राणीमात्र के कल्याण के लिए प्रार्थना करने वाला, ऐसा समाज जिन्होंने दिया उन महापुरूषों के हम वंशज हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने बहुत आग्रहपूर्वक कहा था कि आलस्य त्यागो, जड़ता छोड़ो।
परमपूज्य हेगडेवार ने इस बात को भलीभांति समझ लिया था – इस देश का भला तब तक नहीं हो सकता जब तक यहां की जनता देशभक्ति के भाव से ओतप्रोत होकर, संगठित होकर, संकीर्ण भावना छोड़कर, एक नहीं हो जाते। देश का भला तब तक नहीं हो सकता जब समाज एकजुट नहीं होगा। ऐसा भाव तभी आता है जब समाज राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत होता है। किसी एक व्यक्ति की महानता से देश महान नहीं होता। देश महान तब होता है जब वहां कि जनता आत्मबोघ से युक्त होकर संगठित होकर खड़े हों। सभी में यह भाव हो कि मुझे अपने समाज को आगे बढ़ाना है, देश को आगे बढ़ाना है। दुनिया के अंदर कितने उदाहरण हैं। जापान विश्वयुद्ध के समय नष्ट हो गया था मगर वहां के नागरिकों की देश भक्ति और राष्ट्र पुनर्निमाण की इच्छाशक्ति के फलस्वरूप विश्व में वह आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गया, ऐसी देशभक्ति की भावना हम सभी में होनी चाहिए।
‘‘डाॅ हेगडेवार ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जो किसी समस्या का सामना एकजुट होकर करे और उसका निवारण भी करें। इसलिए उन्होंने एक ऐसी पद्धति दी जिसे हम ‘‘शाखा पद्धति’’ कहते हैं। यह सिद्ध हो चुका है कि जब देश में कोई संकट या प्राकृतिक आपदा या समस्या आ जाती है तब संघ का स्वयंसेवक जहां है, जैसा है, उसी अवस्था में पहुंचकर लोगों की मदद करते हैं। ऐसा इसलिए है कि संघ का स्वयंसेवक नित्य शाखा में देशप्रेम और देशहित का संकल्प लेता है उनमें सिर्फ एक ही भाव रहता है भारत मेरी माता है। जैसे हम अपनी मां की सेवा के लिए कार्य करते हैं और उसका ढ़िढोरा नहीं पीटते ठीक उसी तरह मातृत्व भाव से स्वयंसेवक सिर्फ यह कार्य निरन्तर करते रहता है और अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए आगे बढ़ते रहता है।
हमारे देश के महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने यह प्रण लिया था कि ‘‘इस जन्म में मैं देश के लिए इतना ही कर पाया हूं। मुझे अगले जन्म में फिर से देश की सेवा करने का बार-बार अवसर मिले’’ ऐसा ही संकल्प हर नागरिक को लेने की आवश्यकता है।
व्यक्ति जहां भी रहे जैसा भी रहे यदि उसकी मानसिकता अच्छी नहीं है तो अच्छा परिणाम नहीं मिलेगा। अतः व्यक्ति को हमेंशा सद्भाव से ही कार्य करना चाहिये यही संघ सीखाता है। इस समय इस देश में दो प्रकार की शक्तियां कार्य कर रही है। एक शक्ति ऐसी है जो देश के कण-कण में शंकर भगवान का दर्शन करती है देश के एक-एक इंच को अपना पुण्य मानकर सेवा और आराधना में लगी रहती है और अपना सर्वस्व इसी में अर्पण करती है। यह कल्पना करती है कि देश खण्डित नहीं होना चाहिये देश का अहित नहीं होना चाहिये और देश सुरक्षित रहे। एक दूसरी शक्ति भी है जो देश को फलता-फूलता नहीं देखना चाहती हमेंशा व्यवधान उत्पन्न कर उथल-पुथल करने में लगी रहती हैं। जिसके प्रभाव के फलस्वरूप देखने में आता है कि देश श को तोड़ने का नारा लगता है, भारत को विखण्डित करने के सपने देखे जाते हैं। जब हमारे जवान शहीद होते हैं तो वहां खुशियां मनती है, ऐसा दृश्य भी वह संस्थान देखता है। ऐसी राष्ट्रविरोधी शक्तियां भी भारत में विद्यमान हैं, उनसे सचेत रहने की आवश्यकता है। ऐसी शक्तियां प्रदेश में चाहे बस्तर या सरगुजा या अन्य जगह पर भी सक्रिय हो गई हैं जो समाज में अलगाव पैदा करने का षड़यंत्र कर रही हैं वे यह बताने की कोशिश करते हैं कि आपका पर्व अलग है, पूजा पद्धति अलग है, भाषा अलग है, ऐसा कहते हुए समाज को विखण्डित करने में लगी हुई है। विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां फैलाने का भी षड़यंत्र चल रहा है, दुष्प्रचार भी किया जा रहा है। यह ध्यान में आता है कि देश का प्रबुद्ध वर्ग भी इनके जाल में फंस जाते हैं और दिग्भ्रमित हो जाते हैं। ऐसे समय समाज का यह काम है कि इस बिखराव को रोके और समाज को एकजुट रखे।
‘‘विविधता में एकता ही हमारे देश की शक्ति है’’ भेद नहीं है। भारत की ऐसी विविधता को बचा सक,े ऐसी शक्तियों को जागृत करना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य है। इस देश ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया अपनी संस्कृति को किसी पर थोपा नहीं है लेकिन कई देश आज भी भारत की संस्कृति को अपनाते दिखाई देते हैं। यह इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि देश के महापुरूषों ने अपने आचरण से यह कार्य किया। वह जहां-जहां गये वहां के लोगों ने भारतीय संस्कृति को स्वीकार किया। ऐसा सभी को एक साथ लेकर कार्य करने का लक्ष्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है।
दुनिया के अंदर एक विचार है जो सबको जोड़ने की भावना रखता है वह सिर्फ भारत में विद्यमान है। इन्हीं आचरणों व आदर्शों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के निर्माण के लिए निकल पड़ा है। आज हमें सोचना है कि हम कितना समय इस देश के लिए निकाल सकते हैं, कैसे विचारों को लेकर हम आगे बढ़ सकते है,ं तभी लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
आइए इस विजयादशमी पर्व के अवसर पर हम सब यह संकल्प लें कि हम ऐसा कार्य करें कि भारत विश्व के शिखर पर स्थापित हो सके।
इस कार्यक्रम में प्रांत के सह संघचालक डाॅ. पूर्णेन्दु सक्सेना, विभाग सह संघचालक श्री भास्कर किन्हेकर, महानगर संघचालक श्री उमेश अग्रवाल, महानगर कार्यवाह श्री टोपलाल वर्मा सहित बड़ी संख्या में संघ के स्वयंसेवक एवम गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।