चार दिवसीय हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवाल मेला

भुवनेश्वर : भारत को यदि विश्व गुरु बनाना है तो शिक्षा व्यवस्था में आध्यात्म विद्या को शामिल करना होगा। भारतीय संविधान को सम्मान देते हुए सभी धर्मावलंबियों से चर्चा कर भौतिक विद्या के साथ शिक्षा व्यवस्था में आध्यात्मिक विद्या को शामिल किया जाना चाहिए। इससे हम अपने बच्चों को उत्तम चरित्रवान बना सकते हैं।

आध्यात्म जीवन में हर प्रकार की भौतिक प्रगति भी है और तभी जाकर भारत विश्व गुरु बन सकता है। यह बात मंगलवार को राजधानी भुवनेश्वर यूनिट-3 प्रदर्शनी मैदान में आइएमसीटी की ओर से आयोजित

चार दिवसीय हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवाल मेला में गजपति महाराज दिव्य ¨सहदेव ने कही। उन्होंने कहा कि दो संस्कृति के बीच हम फंस गए हैं। कहां जाएं रास्ता नहीं मिल रहा है। भारत का स्वरूप ऋषि मुनियों का रहा है, जो वर्तमान समय में नहीं रह गया है।

भौतिक संस्कृति पिछले कुछ दिनों से काफी तेजी से अपना पैर भारत में भी फैला रही है, जिससे भारत की आध्यात्मिक संस्कृति विलुप्त हो रही है। महाराज ने कहा कि हम भारतीय लोग अमेरिका से भी दो कदम आगे बढ़कर भौतिक परंपरा को अपना रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है हमारी व्यवस्था।
पूरी दुनिया के साथ भारत में भी व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया है, वह आध्यात्म के लिए अनुकूल नहीं हैं। गजपति महाराज ने कहा कि आज घर का परिवेश ही आध्यात्मिक शिक्षा के लिए अनुकूल नहीं है, स्कूल में आध्यात्मिक शिक्षा है ही नहीं, चरित्र का निर्माण मेडिकल साइंस या साइंस से नहीं हो सकता है। इस पर चिंतन की जरूरत है। गजपति महाराज ने प्रस्ताव दिया कि हमें इसके लिए संतों के विचार का अध्ययन करना होगा, मार्ग खुद प्रशस्त हो जाएगा। घर, शिक्षानुष्ठान एवं व्यापक समाज से सुधार लाकर मानव का निर्माण हो सकता है।

यह तभी संभव है जब हम अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव लाएंगे।

आइएमसीटी की ट्रस्टी राजलक्ष्मी ने कहा कि आप अपने माता-पिता का आदर व सम्मान करें तो आपको किसी मंदिर जाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि आगामी 2021 में दिल्ली में इस कार्यक्रम का आयोजन होगा, जिसमें पूरे विश्व के लोगों को आमंत्रित किया जाएगा।
आइएमसीटी के कार्यकारी अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा ने मेला आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कहा कि 6 विषय को लेकर 200 स्कूलों में 38 प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित की गई और बच्चों को पुरस्कृत किया गया। इस दौरान नारी सम्मान को प्रोत्साहन, कन्या पूजन, आचार्य वंदना, 500 परिवार एक साथ बैठेंगे और अपने माता-पिता का पूजन करेंगे। शर्मा ने कहा कि इस मेला में 160 सामाजिक संस्थाओं ने स्टॉल लगाए हैं, जो अपने सेवा कार्य को प्रदर्शित कर रहे है।

सामूहिक कन्या पूजन कार्यक्रम

आयोजित चार दिवसीय आध्यात्मिक हिंदू सेवा मेला में बुधवार को

सामूहिक कन्या पूजन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें 500 कन्याओं का 500 बच्चों ने वैदिक रीति के अनुसार पूजन किया। मंत्रोच्चार एवं हुलहुली ध्वनि के बीच कन्याओं की आरती उतारी तथा एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर अनुष्ठान का समापन हुआ। इस सामूहिक कन्या पूजन अनुष्ठान को देखने के लिए लोगों की खासी भीड़ उमड़ी। आइएमसीटी के कार्यकारी अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा ने कहा कि कन्या पूजन की परंपरा भारत में काफी पुरानी है, जो अब लुप्त हो गई है। इसे पुन: प्रचलन करने एवं कन्या पूजन के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से कन्या पूजन जरूरी है। उन्होंने कहा कि इतनी संख्या में बच्चों का यहां पहुंचना इस बात को दर्शाता है कि हम यदि मेहनत करें तो अपनी परंपरा को पुनर्जीवित कर सकते है। इस आयोजन में देव प्रसाद मिश्र एवं आइएमसीटी की टीम ने सहयोग किया।

500 छात्र-छात्रओं ने आचार्य की पूजा-अर्चना की

 राजधानी स्थित प्रदर्शनी मैदान में आयोजित आध्यात्मिक एवं सेवा मेला लोगों के आकर्षण केंद्र बना हुआ है। इनेसिएटिव फॉर मॉरल एंड कल्चरल ट्रे¨नग (आइएमसीटी) फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस मेले में गुरुवार को सुबह आचार्य वंदना कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें 500 छात्र-छात्रओं ने पंडित विश्वनाथ रथ की मौजूदगी में अपने-अपने आचार्य की पूजा-अर्चना की।

 

 मेला परिसर में गो नाशिका, पर्वत एवं पेड़ों की सुरक्षा, जल संरक्षण आदि की आकर्षक झांकी लोगों का ध्यान खींच रही हैं। इसके अलावा 160 सामाजिक संगठनों की ओर से लगाए स्टॉलों पर विभिन्न प्रकार की देशी औषधि, उपचार आदि की जानकारी दी जा रही है। वहीं, शाम को विभिन्न स्कूलों के बच्चे आध्यात्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोगों को भारतीय संस्कृति व संस्कारों के प्रति प्रेरित कर रहे हैं। गुरुवार को फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा ने बताया कि भारत में गुरु को भगवान से भी बड़ा माना जाता है, मगर आज के बदलते समाज में यह परंपरा व महत्व खत्म होता जा रहा है।
इस महत्व को भारतीय समाज में पुन: स्थापित करने समेत बच्चों को संस्कारी बनाना, माता-पिता का आदर व सम्मान करना सिखाना, गुरु का सम्मान करना, जल, जीवजंतु के महत्व एवं उसके संरक्षण के लिए प्रेरित करना मेला का मकसद है। इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि संस्कृति के विद्वान प्रो. डॉक्टर प्रफुल्ल मिश्र, सेंटर यूनिवर्सिटी के उपकुलपति प्रो. डॉ. आदित्य महांती, अखिल भारतीय ¨हदू सेवा मेला के सह सेवा प्रमुख गुणवंत ¨सह कोठारी, अध्यक्ष मनोरंजन महापात्र आदि प्रमुख उपस्थित थे।

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