महावीर जयंती – अहिंसा, अमृषा, अचौर्य , अमैथुन और अपरिग्रह

भारत महापुरुषों और देवी-देवताओं का देश कहा जाता है ।   इसी देश की भूमि पर देवी-देवताओं ने अवतार लेकर महान कार्य किये और ऋषि-मुनियों ने ज्ञान की गंगा बहायी । हम उन्हें तथा उनके महान कार्यों को याद करने के लिए हर वर्ष उनके जन्मदिवस भी मनाते हैं।
उनमें से एक अवतारी परमपुरुष हैं भगवान महावीर, जिनका अवतार इस देश की पवित्र भूमि पर हुआ मनुष्य के मन से बुरे विचार दूर कर उस प्रत्येक जड़-चेतन का कल्याण करने लायक बनाने के लिए ।
संत महावीर जैन धर्म के गुरु थे| वे एक प्रवर्तक और जैन धर्म के चौबीसवे (24) तीर्थकर थे | जैन धर्म के मूल सिधान्तों की स्थापना में उनका अहम योगदान है। उनका जन्म हिन्दू कैलेंडर के शुक्लपक्ष, चैत्र महीने के 13वें दिन 540 ईसीबी में कुंडलगामा, वैशाली जिला, बिहार में हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष महावीर जयंती के उत्सव को अप्रैल के महीने में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।यह दिन जैन धर्म के लिए बहुत ही मायने रखता है। यह दिन राजपत्रित अवकाश के रूप में पूरे भारत में माना जाता है और लगभग सभी सरकारी दफ्तरों तथा शैक्षिक संसथानों में छुट्टी होता है।
भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन अहिंसा को बढ़ावा देने में लगा दिया | मानव को दया और अहिंसा तथा मन की पवित्रता की शिक्षा देने वाले महावीर का जन्म बिहार के वैशाली राज्य के राजपरिवार में हुआ था । किन्तु बचपन से ही राज-कार्य या धन-सम्पत्ति आदि के प्रति उनके मन में कोई आकर्षण नहीं था । उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ एवं माता का नाम रानी त्रिसला था। इनके पिता क्षत्रिय जाति के थे। इनकी माँ एक धार्मिक महिला थीं।महावीर का बचपन का नाम वर्धमान था।
किशोरावस्था में इन्होंने एक बार एक मद्मस्त हाथी को वश में कर लिया था। इसी प्रकार एक बार एक भयंकर नाग भी इन्होंने काबू में कर दिखाया था। उसी कारण लोग इन्हें महावीर कहने लगे। बाल अवस्था में ही अपनी इच्छाओं और इन्द्रियों पर विजय पा लेने के कारण भी इन्हें महावीर कहा जाता है।इनका विवाह एक सुन्दर राजकुमारी से हुआ। पर इनका मन सांसरिक सुखों और चीजों में नहीं लगा। वह सदैव ध्यान और चिंतन मनन में रमे रहते थे। पिता के स्वर्गवास हो जाने पर इन्हें वैराग्य हो गया।
वर्धमान का मन हर समय जनकल्याण के लिये छटपटाता रहता था। मात्र तीस वर्ष की आयु में यह घर बार छोड़कर निकल पड़े। महावीर ने बारह वर्ष तक कठोर साधना व तप किया। तत्पश्चात इन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। फिर इन्होंने कैवल्य ज्ञान और सत्य मार्ग का उपदेश जन जन तक पहुँचाया। इनके सरल उपदेशों और व्यावहारिक ज्ञान के कारण इनके भक्त और शिष्य बढ़ते गये।
जिस युग में जात-पात को बढ़ावा दिया जाता था उस काल में भगवान महावीर का जन्म हुआ था| उन्होंने दुनिया की बुराई मिटाने के लिए सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया| ध्यानता में लीन हो गए थे और ज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने जैन धर्म का प्रचार आरम्भ किया । उन्हीं भगवान महावीर के जन्म दिन को महावीर जयन्ती के रूप में याद किया जाता है ।
महावीर से जुड़े हुए सभी मंदिरों और स्थलों को इस विशेष अवसर पर फूलों, झंडों आदि से सजाया जाता है। इस दिन, समारोह और पूजा से पहले महावीर स्वामी की मूर्ति को पारंपरिक स्नान कराया जाता है और इसके बाद भव्य जूलुस या शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन गरीब लोगों को कपड़े, भोजन, रुपये और अन्य आवश्यक वस्तुओं को बाँटने की परंपरा है। इस तरह के आयोजन जैन समुदायों के द्वारा आयोजित किए जाते हैं। बड़े समारोह उत्सवों का गिरनार और पालीताना सहित गुजरात, श्री महावीर जी, राजस्थान, पारसनाथ मंदिर, कोलकाता, पावापुरी, बिहार आदि में भव्य आयोजन किया जाता है। यह लोगों के द्वारा स्थानीय रुप से महावीर स्वामी जी की मूर्ति का अभिषेक करके मनाया जाता है। इस दिन, जैन धर्म के लोग शोभायात्रा के कार्यक्रम में शामिल होते हैं। लोग ध्यान और पूजा करने के लिए जैन मंदिरों में जाते हैं। कुछ महान जैनी लोग, जैन धर्म के सिद्धान्तों को लोगों तक पहुँचाने के लिए मंदिरों में प्रवचन देते हैं।
महावीर जयन्ती केवल एक पर्व या उत्सव ही नहीं बल्कि सत्य, सादगी, अहिंसा और पवित्रता का प्रतीक है । इस पर्व से हमें हर वर्ष यह प्रेरणा देने का प्रयत्न किया जाता है कि हमें अपने जीवन में झूठ, कपट, लोभ-लालच और दिखावे से दूर रखना चाहिए तथा सच्चा, शुद्ध और परोपकारी जीवन जीना चाहिए त भी अपना और इस संसार का कल्याण संभव है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *