छॉलीवुड हॉलीवुड की नकल, भारतीय दृष्टि तलाशें : डॉ. मनमोहन वैद्य

 

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर और चित्र भारती के संयुक्त तत्वाधान में समझ फिल्मों की फिल्मोत्सव का अयोजन महंत घासीदास संग्रहालय आडिटोरियम में आज 8 दिसंबर 2017 को दोपहर 12 बजे आयोजित किया गया।  एक दिवसीय इस फिल्मोत्सव के मुख्य अतिथि डॉ. मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अध्यक्षता -प्रो. डॉ. मानसिंह परमार, कुलपति ने की।  समझ फिल्मों की – फिल्मोंत्सव के प्रांरभ में चार लघु फिल्में – भाषा का महत्व, ग्रामीण विकास, होप (योगेश अग्रवाल) और मिरर ऑफ क्लिन इंडिया (अमीर हाशमी) का प्र्रीव्यु किया गया ।
मुख्य अतिथि डॉ. मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने कहा कि जब हम विदेशों की 4-5 फिल्में देखते है यथा ईरानी या बेलजियम फिल्में देखते है तो वहाँ के समाज का प्रतिबिंब हमें दिखाई देता है। ऐसा आप 10 भारतीय फिल्में देखकर भी भारतीयता का बोध नहीं कर सकते।  हम बंटे हुए है- बॉलीवुड, टॉलीवुड, छालीवुड इत्यादि में। हमें नामेनकल्चर और कोलानाईजेशन से बाहर आना होगा। हम नकल न करें। भारतीयता के नाम, जीवन मूल्य से लेकर सामग्री तक दिखाई जानी चाहिए। दुनिया भर में भारत का महत्व और मान बढ़ रहा है। इसका कारण है कि आजादी के बाद पहली बार भारतीयता का बोध, चिंतन और जीवन शैली का पक्ष प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। विश् व चिंतन की दृष्टि से देखे तो भारत मेें जीवन का चिंतन आधार आध्यात्मिकता है। यहाँ अर्थकाम को पुरूषार्थ के साथ अर्जित करना है और इसे धर्मार्थ में व्यय करना है। भारतीय धर्म का स्वरूप कर्मकांडी नहीं समाज परोपकारी है। दुर्भाग्य से आजादी के बाद से हमारी शिक्षा व्यवस्था में धर्म का समावेश नहीं किया गया है। स्वराज आ गया है, अब लोकशक्ति को जगाने का समय है।
प्रो. डॉ. मानसिंह परमार, कुलपति ने अपने उद्बोधन में कहा कि फिल्में संचार का सशक्त और प्रभावी माध्यम है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से देश और समाज में सामाजिक क्रांति लाई जा सकती है। विश्वविद्यालयों में फिल्मों के कलात्मक एवं तकनीकी शिक्षा का महत्व बढ़ा है। इसका उपयोग समाज के उत्थान एवं लोकमंगल के लिए करना चाहिए । फिल्मों में बेहतर सबजेक्ट से युवा पीढ़ी में भारत बोध की चेतना जागृत करना हमारा उद्देश्य होगा। फिल्मोंत्सव में छत्तीसगढ़ के प्रमुख फिल्मकार योगेश अग्रवाल की होप, जो बेटियों के महत्व पर आधारित सार्थक फिल्म को समिक्षकों की सराहना मिली।
छत्तीसगढ़ हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित सैन्य संगीत विवेचन पर आधारित पुस्तक घोष शास्त्र का विमोचन डॉ. मनमोहन वैद्य ने किया इसके लेखक हरि विनायक दात्ये और अनुवादक अनिल जोशी है। कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती वंदना से किया गया । संचालन आंकाक्षा दुबे और आभार प्रदर्शन योगेश अग्रवाल ने किया। चित्र भारती संस्था का परिचय अनिल द्विवेदी ने दिया । उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय फिल्मोत्सव नई दिल्ली में फरवरी 2018 में आयोजित होगा विस्तृत जानकारी संस्था की वेबसाईट में उपलब्ध है। कार्यक्रम के संयोजक आशुतोष मंडावी विभागाध्यक्ष ए.पी.आर. और डॉ. अतुल कुमार तिवारी कुलसचिव थे। छत्तीसगढ़ फिल्म जगत की प्रमुख हस्तियां मोहन सुंदरानी, मनोज वर्मा, प्रकाश अवस्थी, तपेश जैन, दिलीप बैस, अलक राय अभिनेत्रियां- शेाभिता, माधवी, पल्लवी सहित प्रमुख साहित्यकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

छॉलीवुड हॉलीवुड की नकल, भारतीय दृष्टि तलाशें : डॉ. मनमोहन वैद्य

‘चित्र भारती’ तथा कुशाभाऊ ठाकरे जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय का आयोजन.

                
रायपुर. चित्र भारती तथा कुशाभाऊ ठाकरे जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर के संयुक्त बैनर पर आयोजित ​समझ फिल्म की कार्यक्रम आज संस्कृति विभाग के सभागार में संपन्न हुआ. इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख तथा चित्र भारती के संरक्षक डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि हम विदेशों की नकल में पडकर छॉलीवुड और बॉलीवुड नाम फिल्म संस्थाओं का रखते हैं लेकिन अन्य देशों में ऐसा नही है. भारतीय संस्क्रति और विचार पर आधारित फिल्में देश् और समाज का हित कर सकती हैं तथा एक नई दिशा दे सकती हैं.
कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती मां की प्रतिमा पर दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ. स्वागत और सम्मान की औपचारिकता के बाद वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी ने चित्र भारती संस्था तथा नईदिल्ली में होने वाले नेशनल फिल्म फेस्टिवल की जानकारी दी. छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ’घोष शास्त्र’ का विमोचन भी किया गया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुशाभाऊ ठाकरे जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. एम.एस. परमार ने कहा कि फिल्में भी संचार का बेहतरीन माध्यम हैं. इन्हें देखसुनकर भी समाज में बदलाव आता है. सोच और समझ विकसित होती है. बॉलीवुड को चाहिए कि वह भारतीय समाज और जीवन पर आधारित फिल्मों का निर्माण करे. श्री परमार ने बताया कि वि.वि में हम नये स्टूडियो का निर्माण कर रहे हैं जहां से टीवी और रेडियो पत्रकारिता का प्रशिक्षण हासिल कर प्रतिभाएं मीडिया जगत में जाएंगी तो देश और समाज के काम आ सकेंगी. इस अवसर पर चार लघु फिल्मों का प्रदर्शन ​भी किया गया.

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *