सन 1492 को काफ़ी प्रयासों से, स्पेन और पूर्तगाल के राजाओं के मना करने के बाद भी कैथालिक मिशन द्वारा प्रदान की गयी आर्थिक मदद से भारत के व्यापार मार्ग खोजने के मक़सद से निकला कोलंबस ग़लती से अमेरिका के पूर्वी तट पे जा पहुँचा | उस वक़्त समस्त अमेरिकी महाद्वीप पर मुख्यतः पाँच मूल निवासियों का आधिपत्य था | वे थी चेरोकी (Cherokee), चिकासौ (Chickasaw), चोक्ताव (Choctaw),, मास्कोगी (Muskogee) और सेमिनोल (Seminole)| किनारे पर उतरने के बाद कोलंबस इसे भारत समझ बैठा और जिन लोगों को उसने देखा उन्हें इंडीयन समझा | वह आक्टोबर के दूसरे सोमवार का दिन था | कुल चार समुद्री यात्रा मे स्पेन, पौर्तुगाल और अंग्रेजो ने अमरीका मे अपनी साम्राज्य बनाने की पूरी रूप रेखा बना ली थी । इतना विशाल देश होने के कारण अग्रेजों को लगभग 1600 ईसवी तक सुदूर इलाक़ों से संघर्ष का सामना करना पड़ा | सबसे पहला दो तरफ़ा युद्ध अंग्रेज़ों को आज के वर्जिन्या प्रांत में पवहाटन आदिवासियों से करना पड़ा | इन तीन युद्ध की शृंखला में पहला युद्ध 9 अगस्त कोहुआ, जिसने पूरे पोवहाटन क़ाबिले के लोग लड़ते हुए मारे गए | इसे भारत के संदर्भ में 1757 के प्लासी के युद्ध से तुलना कर सकते हैं | जिस हार ने अंग्रेज़ों को वहाँ के आदिवासियों को पूरी तरह ख़त्म करने या ग़ुलाम बनाने का रास्ता खोल दिया । फिर भी लगभग 250 वर्षों के नेटिव के साथ युद्ध और नर संहार के बाद अधिक सफलतआ नहीं मिली | तब मिशनरीयो के द्वारा मुफ़्त शिक्षा व इलाज के नाम पर उनसे सह सम्बंध बनाए गए और बड़ीं संख्या में सिविलाईज किया गया | उन्ही को अपनी सेना में भर्ती कर आपस में लड़ाया गया |
तब ब्रिटिश सेना के प्रमुख सर जेफ़्री आमर्स्ट थे | उन्होने विश्व के पहले रासायनिक युद्ध के द्वारा छोटी चेचक, टीबी, कालरा, टाइफ़ॉईड जैसी घातक बीमारियों के जन्तु-किटाणु ओढ़ने के कंबल, रुमाल व कपड़ों में मिलाकर लगभग 80 % लोगों को तड़पा तड़पाकर मार दिया | अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए ब्रिटिश सेना ने अमरीका के मूल निवासियों का किया यह एक भयावह हत्याकांड था |1775 तक अंग्रेजो ने अमरीका की भूमि पर अपना आधिपत्य लगभग स्थापित कर लिया था और उनकी 13 कोलोनियों पर पूरी तरह हुकूमत थी |
कोलंबस के आने के लगभग 250 वर्षों में मूल निवासियों का रक्त पात करके भी वे केवल थोड़े भू भाग पर ही क़ाबिज़ थे | तभी जोर्ज वाशिंग्टन और हेन्री नोक़्स के नेतृत्व में पहला ब्रिटिश अमेरिकी युद्ध शुरु हुआ | सफलता अमेरिका को मिली व पेरिस की संधि के तहत कोलोनी अमेरिका को मिली | मगर और भू-भागो पर क़ब्ज़ा करके उसे आपस में बाँटने की भी संधि हुई | ‘इंडियन रिमुवल ऐक्ट 1830’ के तहत सभी मूल निवासियों को जोर ज़बरदस्ती मिसिसिपी नदी के उस पार धकेला गया | इस संघर्ष मे 30000 लोग रास्ते में ही मर गये | यह घटना ‘The trail of tears’ (आँसुओं की रेखा) कहलाती है | इस दरम्यान इतनी संख्या मे लोग मर गए की केवल 5 प्रतिशत मूलनिवासी ही जिंदा बचे थे ।
12 ऑक्टोबर 1992 को कोलंबस के अमरिका आने के 500 वर्ष पूरे हुए | तब एक बड़ा जश्न मनाने की तयारी चल रही थी | लेकिन इस उत्सवों के विरोध में ‘कोलंबस चले जाव’ नामसे एक अभियान चलाया गया | इस अभियान को शांत करने के लिए अपराध बोधके भाव से इस दिन को अमेरिका का “ Indigenous People day” घोषित किया गया | संयुक्त राष्ट्र को विश्व मूलनिवासी दिवस भी 12 अक्तूबर को ही मनाना था | मगर अमेरिका में विरोध और ब्रिटेन -पोवहाटन युद्ध में ब्रिटेन की सत्ता विर्जीनिया प्रांत में स्थापित होने के कारण वहाँ धर्म प्रचार की शुरुआत करने का मौका प्राप्त हुआ | वह दिन भी 9 अगस्त ही था | इस दिन को यादगार बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में गुप्त षड्यंत्र के तहत 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया |
यह है विश्व मुलानिवासी दिवस का सही इतिहास |
लेकिन 9 अगस्त का इतिहास बताते समय हमे वर्किंग ग्रूप की 1982 की पहली बैठक का हवाला दिया जाता है, जो की झूठ है |
अगर कोलंबस भारत की खोज में अमेरिका के तट पर नहीं पहुँचा होता , और 09 अगस्त 1610 को वहाँ के मूलनिवासी , ब्रिटिश सेना से अपना पहला द्विपक्षीय युद्ध नहीं हारते तो अमेरिका के मूलनिवासी , आज भी एक सभ्यता की तरह ज़िंदा होते , उनके इतिहास की जड़ें हमारे समृद्ध इतिहास से भी कहीं जुड़ी हैं , क्या हमें अंग्रेज़ों द्वारा ख़त्म कर दिए गए , मूलनिवासी इतिहास से कुछ सिखने की आवश्यकता है ?
जिनका इतिहास दूसरे अत्याचारियों द्वारा लिखित होता है , वो अपना भविष्य कभी नहीं बनाते , आज 09 अगस्त के दिन अंग्रेज़ या यूरोपियन रेस द्वारा , भारत के इतिहास में जनजातियों के योगदान को भुला कर , एक नया मन घड़ंत , एतिहासिक दिन हम पर थोप दिया जा रहा है , जिसका हमारे गौरवशाली इतिहास से कोई सरोकार नहीं है ।
आज भारत के जनजातीय एक भेड़ चाल का हिस्सा बनकर 9 अगस्त ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ मानते हैं | जबकि अमेरिका मे रहने वाले मूलनिवासी इस दिन को अमेरिकी नरसंहारों का दिन मनाते है । क्या हमें भी यूरोपियन उपनिवेशिक ताकतों द्वारा अपने जनजातीय समुदायों के ऊपर किए गए अत्याचारों भूल जाना चाहिए ? क्या बिरसा मुंडा या किसी और अन्य वीर जन जातीय नायक से संबन्धित दिन उनके बलिदानों को सही श्रद्धांजलि नहीं होगा ? ये प्रश्न हमारी अपने पूर्वजों के प्रति प्रतिबद्धता और सम्मान करने की आस्था का विषय है | परंतु अमेरिकी मूल निवासी समुदाय का निर्णय सीखने योग्य है | जिसमें उन्होने किसी और के द्वारा दिये दिन को अपने पूर्वजों के दिन के रूप में मानने से इंकार कर दिया । हर 9 अगस्त को कई हज़ार लोग संयुक्त राष्ट्र के बाहर इस दिन के विरोध में आंदोलन करते हैं । और इधर हम 9 अगस्त को एक उत्सव के रूप मे मनाने मे मश्गुल है |
भारत के जनजाति समाज को तोड़ने का वैश्विक षड्यंत्र —– लक्ष्मण राज सिंह मरकाम ‘लक्ष्य‘