“A peal of spring thunder has crushed over the land of India.“
– People’s Daily (China, July 5, 1967 Editorial)
भारत के वन क्षेत्र 21 प्रतिशत भाग का 60 प्रतिशत हिस्सा जनजातीय है| भारत और मुख्य खनिज लगभग 90 प्रतिशत जन जातीय क्षेत्र में है।
भारत की जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत हिस्सा जनजाती समाज है| क्या इस जनजाति समाज को भारत के विरुद्ध खड़ा करने का कोई वैश्विक षड़यंत्र चल रहा है ? वर्तमान परिस्थिति का ठीक तरह से हम अगर विश्लेषण करेगे तो इस विचार को गंभीरता से सोचने के लिये हमे मजबूर होना पडता है| पछले कुछ सालों से मनाए जाने वाला 9 अगस्त का विश्व मुल निवासी दिवस कही इस वैश्विक षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं इस बात पर हमे विचार करने की आवश्यकता है|
इससे पहले मूलनिवासी इस संकल्पना के इतिहास के बारे हम कुछ जानकारी समझने की कोशिश करेंगे | विश्व मजदूर संगठन (ILO) यह एक संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित संस्था है| मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करना इस संस्था का प्रमुख हेतु है | इसकी स्थापना 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के विजयी देशों ने की थी| वर्ष 1989 में ILO द्वारा ‘राइट्स ऑफ इंडिजिनस पीपल’ कन्वेन्शन क्रमांक169 घोषित किया गया, जिसे विश्व के 189 में से केवल 22 देशों ने स्वीकार किया| जिसका मुख्य कारण ‘इंडिजिनस पीपल’शब्द की परिभाषा को स्पष्ट न करना था | इस संधि में हस्ताक्षर करने वाले वे देश मुख्य थे जिनकी आज भी उपनिवेशिक कालोनिया हैं और जहां बड़ी संख्या में वहाँ के मूलनिवासी लोग दूसरे दर्जे की नागरिकता का जीवन जी रहे हैं| भारत ने भी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए|
मूलनिवासी इस संकल्पना का संदर्भ भारत से नहीं है और भारत में रहने वाले सभी लोग यहाँ के मूलनिवासी है, यह भूमिका स्पष्ट करते हुये, ILO मुल निवासियों के जिन अधिकारों की बात कर रहा है, उससे कही अधिक अधिकार भारत के संविधान ने यहा रहनेवाले सभी लोगों को प्रदान किए है यह भारत सरकार की भूमिका रही है|
केवल 22 देशो ने इस संधि का स्वीकार करने के कारण इस संधि की विफलता को देखते हुये, ILO को इस विषय पर और अधिक आम राय बनाने का दायित्व सौंपा गया |इस दिशा मे आगे बढ़ते हुए ILO ने एक ‘वर्किंग ग्रुप फॉर इंडिजिनस पीपल’ (Working Group of Indigenous Peoples) का गठन किया | WGIP की पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी इसी लिए 9 अगस्त के दिन ‘विश्व इंडिजिनस पीपल डे’ मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई | कई देशों में इस दिन अवकाश मनाया जाने लगा। आज भारत में भी इसी 9 अगस्त को ‘विश्व मूल निवासी’ दिवस मनाने की प्रथा प्रारम्भ हुई है | कुछ संगठनो द्वारा 9 अगस्त का दिवस ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है| यूनो द्वारा घोषीत यह विश्व दिवस तो है लेकिन इस दिन का विश्व के ‘इंडिजिनस’ या मूल निवासियों से कोई संबंध नहीं है| इस दिवस का तो एक अलग ही इतिहास है |
भारत के जनजाति समाज को तोड़ने का वैश्विक षड्यंत्र —– लक्ष्मण राज सिंह मरकाम ‘लक्ष्य‘