धिक्कार है उन पर जो धर्म के नाम पर अधर्म कर रहे हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करने वाला हिन्दू हमेशा मारा जाता है, लेकिन उसके लिए उसी के देश में, उसी के धर्म के लोग उसके लिए दो आंसू भी नहीं बहाते, दूसरों से क्या अपेक्षा करें।

धिक्कार है उन हिंदुओं पर, जो पहलगाम की घटना के बाद से केवल राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं या आंख में पट्टी बांधे बैठे हैं।

धिक्कार है उनपर, जो भाजपा के खिलाफ जहर उगलने की होड़ में देश के खिलाफ विषवमन कर रहे हैं।

धिक्कार हैं उनपर, जिन्हें देश की संप्रभुता पर हुए हमले में भी वोट बैंक की चिंता है। पाकिस्तान के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल पा रहे। धर्म के नाम पर हुई हत्या की निंदा नहीं कर पा रहे, लेकिन इस घटना को देश के नेतृत्व को कोसने का अवसर मानकर ही धन्य हुए जा रहे हैं।

धिक्कार हैं उनपर भी, जो निरीह, निर्दोष, आम हिंदुओं के शव देखकर भी “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं।

धिक्कार है उन कथित बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, प्रोफेसरों और महान पत्रकारों पर, जो रूह अफज़ा शर्बत के समर्थन में पूरी जान झोंके हुए थे, पर धर्म पूछकर मारी गयी गोलियों पर मौन हैं।

धिक्कार है उनपर, जिन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि कश्मीरियों की रोजी रोटी कैसे चलेगी? उन बेशर्मों ने कहीं नहीं लिखा कि मरने वालों के बच्चे कैसे पलेंगे। उनके बूढ़े मां बाप कैसे जियेंगे?

धिक्कार है उनपर, जो अपनी सहूलियत से मीडिया को गोदी मीडिया कहकर दबाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि मीडिया ने इस बार आतंक का धर्म उजागर कर दिया है।

धिक्कार है उनपर, जो कानों में रूई लगाकर बैठे हैं, लेकिन मुंह से बकवास जारी है, वे कह रहे हैं कि मरने वालों ने बताया कि आतंकी धर्म पूछकर गोली मार रहे थे। बहरे उन पत्नियों का रुदन/क्रंदन नहीं सुन पा रहे जो कह रही है कि उनके पति से धर्म पूछकर उसको गोली मार दी।

धिक्कार उनपर भी है, जो कहते हैं हिन्दू भी हिंसक होता है। इतिहास को झूठलाने वाले भूल जाते हैं कि हिंदुओं ने धर्म के नाम पर कोई युद्ध नहीं किया। उसे तो आत्मरक्षा भी नहीं आती। नहीं तो क्या पहलगाम में निहत्था मर जाता?

धिक्कार है उनपर, जो पहलगाम की घटना पर लीपापोती कर रहे हैं। उनका बस चले तो वे इस घटना को ही झूठला दें। उनका बस चले तो वे ये साबित कर दें कि मरने वाले आपस में एक दूसरे को मार कर चल बसे।

लिखना तो बहुत कुछ चाहती हूं, लेकिन इस देश की मिट्टी में जन्म लेकर भी दीमक की तरह इसे खोखला कर रहे परजीवियों की प्रतिक्रिया से आहत हूँ। निःशब्द हूँ। लोगों में सत्य कहने का या तो साहस नहीं है या वे खुद को गिरवी रख चुके हैं। जो अपने भाइयों, अबोध बच्चों की हत्या देखकर भी नहीं सिहरे, वो खुद कितने क्रूर होंगे। जो अपनी माताओं/बहनों के क्रंदन से भी नहीं कांपे वो कितने मगरूर होंगे।

शर्म करो, चुल्लू भर पानी में डूब मरो।

— प्रियंका_कौशल

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