महान तीर्थंकरों की श्रेष्ठतम परंपराओं को अपने जीवन में साक्षात करने वाले जैन धर्म के महान आचार्य पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज का शरीर आज प्रातः डोंगरगढ़- राजनंदगांव (छत्तीसगढ़) में पूर्ण हो गया। पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 1968 में दिगंबरी दीक्षा ली थी और तब से आज तक वे निरंतर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, ब्रह्मचर्य की साधना करते हुए इन पंच महाव्रतों के देशव्यापी प्रचार हेतु समर्पित हो गए। लोक कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर पूज्य आचार्य श्री महाराज ने अपने जीवन में सैकड़ों मुनियों एवं आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान की और लोकोपकारी कार्यों हेतु सदैव अपनी प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान किया। संपूर्ण भारतवर्ष में उन्होंने अनेक स्थानों पर गौशालाएं, शिक्षा संस्थान, हथकरघा केंद्र तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की लोकमंगलकारी योजनाओं का शुभारंभ कराया। अनेक कारागारों में वहां रह रहे हजारों लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करने का अभूतपूर्व कार्य आपके आशीर्वाद से ही चल रहा है। उनकी यही अभिलाषा थी कि यह देश अपनी उदात्त शिक्षाओं और जीवनादर्शों को लेकर पुनः खड़ा हो और वर्तमान समय में विश्व को नई दिशा प्रदान करे। उनका संपूर्ण जीवन इन आदर्शों के प्रति पूरी तरह समर्पित था। अंतिम श्वांस तक उन्होंने अपने कठोर साधनाव्रत का निर्वाह किया। लाखों लोग उन आदर्शों पर आज चल रहे हैं। उनके चले जाने का दु:ख तो सभी को होना स्वाभाविक ही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उनके द्वारा दिग्दर्शित इस मार्ग पर हम सभी लोग और अधिक दृढ़ता और समर्पित भाव से निरंतर आगे बढ़ते रहें तथा उन आदर्शों को तीव्र गति प्रदान करें। हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके समाधि कार्यक्रम में सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के प्रतिनिधि के रूप में छत्तीसगढ़ प्रांत के मा. प्रांत संघचालक डॉ पूर्णेंदु सक्सेना जी उपस्थित थे।
डॉ. पूर्णेंदु सक्सेना
मान.प्रांत संघचालक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
छत्तीसगढ़ प्रांत