*पंडवानी गायिका तीजनबाई*

 

#हर_दिन_पावन
“8 अगस्त/जन्म-दिवस”
*पंडवानी गायिका तीजनबाई*

पांडवों की वाणी (पंडवानी) छत्तीसगढ़ के वनवासी अंचलों में प्रचलित लोकगायन की एक विशिष्ट शैली है। इसमें महाभारत के विभिन्न प्रसंग तथा पात्रों के बीच संवाद प्रस्तुत किये जाते हैं। गाने के साथ ही इसमें चेहरे के हावभाव और हाथ में लिये तंबूरे की क्रियाओं का भी विशेष महत्व है।

इस पंडवानी गायन को विश्वप्रसिद्ध करने वाली लोकगायिका तीजनबाई का जन्म आठ अगस्त, 1956 को भिलाई के पास अटारी गांव में हुआ था; पर उसका अधिक समय पास के ग्राम गनियारी में अपने नाना ब्रजलाल जी के पास बीतता था। इनके पिता श्री झुनुकलाल पारधी तथा माता श्रीमती सुखवती बाई थीं। पारधी एक घुमंतू जनजाति है, जिनका कोई स्थायी ठिकाना तथा काम नहीं होता। वनों में घूमते हुए ही इनका जीवन बीत जाता है। अतः इस जनजाति के बच्चे पढ़ भी नहीं पाते। तीजनबाई का बचपन भी इसी तरह बीता।

जब घर के सब युवा सदस्य रोटी-रोजी की व्यवस्था करने जंगल में चले जाते थे, तब घर पर वृद्ध नाना जी और तीजन ही रह जाते थे। ऐसे में नाना जी प्रायः पंडवानी गाते थे। तीजन की बुद्धि तीव्र और स्मरणशक्ति अद्भुत थी। कुछ ही समय में उसे पूरी कथा याद हो गयी। कभी-कभी वह भी नाना जी के साथ सुर मिलाने लगती थी। नाना जी को लगा कि वह एक अच्छी गायिका हो सकती है। अतः वे उसे मनोयोग से पंडवानी सिखाने लगे।

पुरुष प्रधान पारधी जनजाति में कोई लड़की पंडवानी गाये, यह एक नयी बात थी। अतः समाज के लोगों के साथ तीजन के माता-पिता ने भी इसका विरोध किया; पर नाना जी को तीजन में एक विख्यात गायिका के लक्षण दिखाई दे रहे थे। अतः उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे। उन्होंने तीजन को उपहार में एक तंबूरा भी दिया, जो आज भी हर कार्यक्रम में उनके हाथ में रहता है।

तीजन का उत्साह बढ़ाने के लिए उनके नाना जी ने अपने गांव में ही उसके कुछ कार्यक्रम कराये। उनमें वह भजन और फिल्मी गीत गाती थी। कुछ समय बाद तीजन को प्रायः सपने में आकर कोई स्त्री कहती कि फिल्मी गीत छोड़ो और तंबूरे की शरण लेकर केवल पंडवानी ही गाओ। इसे ईश्वरीय संकेत समझकर तीजन पूर्णतः पंडवानी को समर्पित हो गयीं। कुछ समय बाद उन्होंने श्री उमेद सिंह से प्रशिक्षण लेकर अपनी मंडली बना ली तथा निकटवर्ती उत्सव और मेलों में जाने लगीं। पंडवानी की दो शैली हैं। बैठ कर गाने वाली वेदमती शैली तथा खड़े होकर गाने वाली कापालिक शैली। महिलाएं प्रायः बैठकर गाती थीं; पर तीजनबाई ने कापालिक शैली को अपनाया।

उन दिनों उन्हें एक कार्यक्रम में केवल सौ रु. मिलते थे। अतः आर्थिक समस्या सदा बनी रहती थी। एक बार विख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर ने दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सम्मुख उनका गायन कराया। इससे वे देश भर में प्रसिद्ध हो गयीं। 1986 में एक समारोह में उनकी प्रस्तुति देखकर भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रबंधक श्री संगमेश्वरम् ने उन्हंे स्थाई नौकरी दे दी। इस प्रकार नियमित आय होने से तीजन को अभ्यास के लिए पूरा समय मिलने लगा।

इसके बाद तो सफलता एवं प्रसिद्धि का उनका रथ कभी रुका नहीं। वे भारत के हर राज्य के साथ ही विश्व के कई देशों में पंडवानी गायन कर चुकी हैं। पद्मभूषण तथा सैकड़ों अन्य सम्मानों से विभूषित तीजनबाई इस प्रकार भारतीय संस्कृति की सुगंध पूरी दुनिया में बिखेर रही हैं।

(संदर्भ : अहल्या मासिक, सितम्बर, 2008)

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