नानाजी देशमुख को भारत रत्न सम्मान

ग्राम विकास के अग्रणी श्रद्धेय नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्तूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में कडोली नाम के कस्बे में हुआ था. उनका पूरा नाम चंडिकादास अमृतराव देशमुख था. विद्यार्थी जीवन में ही संघ से संपर्क हुआ. सन् 1934 में संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी द्वारा तन-मन-धन पूर्वक आजन्म कार्यरत रहने की प्रतिज्ञा प्राप्त की. सन् 1940 में संघ के प्रचारक जीवन की शुरुआत हुई. सन् 1947 में वे राष्ट्रधर्म पत्रिका के प्रबंध निदेशख बने. सन् 1967 में भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बने. 1968 में उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उन्हें मोरार जी मन्त्रीमंडल में शामिल किया गया, परन्तु उन्होंने यह कह कर मन्त्रीपद ठुकरा दिया कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रह कर समाज सेवा का कार्य करें, यह संकल्प लेकर वे जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे.

सन् 1991 में मध्यप्रदेश के चित्रकूट में देश का पहला ग्रामोदय विश्वविद्यालय प्रारंभ किया. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें 1999 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया. अटलजी के कार्यकाल में ही भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वावलम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण भी प्रदान किया. सतत् कार्यरत रहकर सबके सामने सामाजिक कार्य का आदर्श खड़ा किया. सतत् कार्यमग्न नानाजी ने कर्मभूमि चित्रकूट में 27 फरवरी 2010 को अंतिम सांस ली और मरणोपरांत देहदान किया.

अपना संपूर्ण जीवन भारत माता के लिये समर्पित करने वाले श्रद्धेय नानाजी देशमुख जी को सर्वोच्च नागरीय सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. जो वंदनीय है.

 

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